स्वाइन फ्लू और कमजोर मॉनसून कहीं फेर ...

02/08/2010 13:10
स्वाइन फ्लू और कमजोर मॉनसून कहीं फेर न दे उम्मीदों पर पानी
विशेष रिपोर्ट

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कंपनियों के परिणाम उम्मीद से कहीं बेहतर रहे हैं। वहीं वैश्विक हालात और बाजार की स्थिति में भी सुधार हो रहा है।

 

हालांकि इस बीच, कमजोर मॉनूसन और स्वाइन फ्लू का खतरा सता रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार की दिशा तय करने में मॉनसून और स्वाइन फ्लू की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

 

डीबीएस चोलामंडलम ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी के सीईओ संजय सिन्हा का कहना है कि मौजूदा समय में बाजार सबसे ज्यादा मॉनसून को लेकर चिंतित है। मॉनसून कमजोर रहने पर घरेलू मांग पर असर पड़ने की आशंका है, वहीं सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर भी प्रभावित हो सकती है।

 

स्वाइन फ्लू के रूप में एक और संकट खड़ा हो गया है। बीएसई के सदस्य रमेश दामाणी का कहना है कि कमजोर मॉनसून और स्वाइन फ्लू के बढ़ते खतरे को देखते हुए पिछले दस दिन में बाजार के रुख में बदलाव आया है।

 

उनका कहना है कि अगर स्वाइन फ्लू की समस्या और गंभीर होती है, तो बाजार पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि अभी इस प्रभाव के बारे में नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना तय है कि यह बाजार की धारणाओं के हित में नहीं है।

 

मॉनसून का असर

 

कुछ समय तक लोग मॉनसून को लेकर देखो और इंतजार करो की नीति पर चल रहे थे, लेकिन अब इसका असर दिख रहा है। कमजोर मॉनसून को देखते हुए विश्लेषक और अर्थशास्त्री जीडीपी के अनुमानित आंकड़ों में कमी की बात कर रहे हैं।

 

दरअसल, उनकी चिंता मांग में कमी को लेकर है। डन ऐंड ब्रैंडस्ट्रीट की विश्लेषक याशिका सिंह का कहना है कि मौजूदा समय में हम सुधार के संकेत देख रहे हैं, लेकिन मॉनसून  कमजोर रहने से स्थिति विकट हो सकती है। इसका असर ग्रामीण क्षेत्रों की मांग और कारोबार पर पड़ने की आशंका है।

 

अनुमान के मुताबिक, बारिश में 29 फीसदी की कमी आ सकती है। खास बात यह कि 70 फीसदी से ज्यादा क्षेत्र बारिश की कमी से जूझ रहा है और इसमें से काफी इलाके को तो सूखाग्रस्त भी घोषित किया जा चुका है। याशिका सिंह का कहना है कि प्रतिकूल माहौल में वर्ष 2009-10 के दौरान 6 फीसदी से कम जीडीपी रहने का अनुमान है।

 

दरअसल, देश का ज्यादातर कृषि क्षेत्र मॉनसून पर निर्भर करता है। ऐसे में कमजोर मॉनसून सारा गणित बिगाड़ सकता है। यही नहीं, करीब 60 फीसदी आबादी गांवों में रहती है, जबकि 46 फीसदी की आजीविका का साधन कृषि ही है।

 

ऐसे में उपज नहीं होने से ग्रामीण इलाकों में मांग घटेगी, जिसका असर जीडीपी पर पड़ना तय है। सीएमआईई जैसी संस्था ने भी वर्ष 2009-10 के लिए जीडीपी विकास दर का अनुमान 6.6 फीसदी से घटाकर 5.8 फीसदी कर दिया है।

 

आय और मूल्यांकन

 

विकास दर में सुस्ती से कंपनियों की आय भी प्रभावित हो सकती है। जून तिमाही में सेंसेक्स कंपनियों की बिक्री में 3.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, वहीं शुद्ध मुनाफे में 6.8 फीसदी की कमी आई है। हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि ये परिणाम उम्मीद से अच्छे हैं।

 

दरअसल, दिसंबर और मार्च 2009 की तिमाही में कंपनियों के नतीजे आशानुरूप नहीं रहे थे। वैसे, कमजोर मॉनसून आने वाली तिमाहियों में कंपनियों की उम्मीदों पर पानी फेर सकता है। एमके ग्लोबल फाइनैंशियल सर्विसेज के इंस्टीटयूशनल रिसर्च के प्रमुख अजय परमार का कहना है कि मॉनसून का वास्तविक असर सितंबर तिमाही में दिखेगा।

 

स्वाइन फ्लू : बढ़ता खतरा

 

बाजार के लिए स्वाइन फ्लू के रूप में एक और खतरा बढ़ रहा है। परमार का कहना है कि यह बाजार को कितना प्र्रभावित कर सकता है, इसका अनाुमन फिलहाल नहीं लगाया जा सकता है।

 

हां, इतना तय है कि अगर इस संक्रामक वायरस की रोक-थाम नहीं की गई, तो ऑफिसों में उपस्थिति घट सकती है और बाजार पर इसका असर दिख सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि इससे आईटी, होटल, पर्यटन, मनोरंजन और रिटेल सेक्टर को नुकसान होने की आशंका है।

 

आगे क्या होगा

 

औद्योगिक उत्पादन में सुधार के संकेत और कंपनियों की आय में इजाफे को देखते हुए बाजार एक दायरे में रह सकता है। मॉनसून और स्वाइन फ्लू एक हद तक ही इसे प्रभावित कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में निचले स्तर पर पैसा लगाना चाहिए।

 

यह कहना है के आर चोकसी शेयर ऐंड सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक देवेन चोकसी का। कमजोर मॉनसून से एफएमसीजी, सीमेंट, वाहन और उवर्रक कंपनियों पर असर पड़ सकता है। हालांकि हेल्थकेयर, ऊर्जा, बुनियादी क्षेत्र, पूंजीगत वस्तुएं और दूरसंचार क्षेत्र पर इसका असर कम ही होगा।

 



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